उसके इतने सारे कार्यों में,
सच्चे तजुर्बे वाले हर किसी को, अनुभव होता श्रद्धा और भय का,
जो है प्रशंसा से बढ़कर।
लोगों ने देखा है अनुशासन व न्याय के कार्य में परमेश्वर का स्वभाव,
तभी तो है उनके दिलों में आदर।
परमेश्वर है आज्ञापालन और श्रद्धा योग्य,
क्योंकि उसकी सत्ता व स्वभाव है जीवों से हटकर,
है जीवों से बहुत ऊपर।
इंसान नहीं केवल परमेश्वर है श्रद्धा और समर्पण के योग्य।
उसके कार्य का अनुभव है जिन्हें, उसका ज्ञान है जिन्हें,
उसके प्रति श्रद्धा है उनमें।
परमेश्वर के विरुद्ध है जिनकी धारणा,
जो नहीं मानते उसको परमेश्वर, या नहीं रखते श्रद्धा उसपर,
जीते नहीं गए हैं, हालांकि करते हैं उसका अनुसरण।
स्वभाव से हैं वे अवज्ञाकारी।
बनाने वाले का आदर करें सभी निर्मित जीव,
कर सकें सभी परमेश्वर की आराधना
और पूरे दिल से उसकी प्रभुता को हों समर्पित,
परमेश्वर का कार्य करना चाहता है इसे ही हासिल।
उसकी हस्ती, उसका स्वभाव, जीवों से अलग है, ऊपर है।
श्रद्धा और समर्पण के काबिल, केवल परमेश्वर है।
और अंत में इसे ही हासिल करेगा काम उसका।
"वचन देह में प्रकट होता है" से