इंसान सभी चीज़ों के बीच रहता है,
उसे शैतान ने दूषित किया, धोखा दिया है।
मगर फिर भी इंसान, हवा को छोड़ नहीं सकता है।
मगर फिर भी इंसान, पानी को छोड़ नहीं सकता है।
और तमाम चीज़ों को जिसे परमेश्वर ने बनाया है।
इंसान, परमेश्वर की बनाई इस जगह पर ही, रहता है, बढ़ता है, रहता है।
इंसान का सहज-ज्ञान बदला नहीं है।
अब भी इंसान देखने-सुनने के लिये, आंख-कान पर ही भरोसा करता है,
दिमाग़ से सोचता है, दिल से समझता है,
पैरों से चलता है, हाथों से काम लेता है।
परमेश्वर ने जो दिया इंसान को सहज-ज्ञान,
ताकि पा सके वो उसका प्रावधान, वो बदला नहीं।
इंसान का हुनर, जिससे वो परमेश्वर को,
सहयोग करता है, इंसानी फ़र्ज़ निभाता है, वो बदला नहीं है।
उसकी आत्मिक ज़रूरतें बदली नहीं हैं।
अपने मूल को तलाशने की चाहत बदली नहीं है।
इंसान की ये लालसा, कि परमेश्वर उसे बचाए,
बदली नहीं है। बदली नहीं है।
परमेश्वर के अधिकार के अधीन जो रहता है,
शैतान के हाथों, ख़ूनी तबाही जिसने झेली है, ये हालत है उस इंसान की।
इंसान सभी चीज़ों के बीच रहता है, उसे शैतान ने दूषित किया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से