मसीह का सार तय होता है उसके काम और अभिव्यक्तियों से।
सच्चे दिल से पूरा करता है वो काम जो सुपुर्द है उसके,
स्वर्ग के परमेश्वर को पूजता है
और अपने पिता की इच्छा तलाशता है।
ये सब तय होता है उसके सार से,
और उसी से उसके कुदरती प्रकाशन तय होते हैं।
वो कुदरती प्रकाशन कहलाते हैं,
चूंकि उसकी अभिव्यक्तियां नकल नहीं हैं,
ना ही इंसान के बरसों के सुधार या तालीम का नतीजा हैं।
ना तो इन्हें उसने सीखा है, ना ख़ुद पर सजाया है,
बल्कि सहज हैं।
ना तो इन्हें उसने सीखा है, ना ख़ुद पर सजाया है,
बल्कि सहज हैं, बल्कि सहज हैं, सहज हैं, सहज हैं।
बल्कि सहज हैं, सहज हैं, सहज हैं।
इंसान उसके काम को, अभिव्यक्तियों को, मानवता को नकार सकता है,
वे उसके सामान्य मानवता के जीवन को भी नकार सकते हैं,
मगर उसके सच्चे दिल को नहीं
जब वो स्वर्ग में परमेश्वर को पूजता है।
कोई नकार नहीं सकता कि
वो स्वर्गीय पिता की इच्छा को पूरा करने की ख़ातिर यहां है।
और कोई नकार नहीं सकता जिस सच्चाई से
वो पिता परमेश्वर को खोजता है।
शायद उसकी छवि इंद्रियों को ना भाए,
शायद उसके उपदेश का लहजा निराला ना हो,
शायद उसका काम धरती-या-आकाश को उतना ना हिला पाए,
जितना इंसान अपनी कल्पना में मानता है।
मगर वो सचमुच मसीह है, जो पूरा करता है इच्छा अपने पिता की,
पूरे दिल से, पूरे समर्पण से, मौत की हद तक आज्ञापालन से।
ऐसा इसलिये कि उसका सार मसीह का है।
इन्सान के लिये इस सच पर यकीन करना मुश्किल है,
मगर जो सचमुच वजूद में है,
मगर जो सचमुच वजूद में है,
मगर जो सचमुच वजूद में है,
मगर जो सचमुच वजूद में है,
मगर जो सचमुच वजूद में है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से