परमेश्वर के दो देहधारणों के मायने
व्यवस्था युग के अंत के बाद, अनुग्रह के युग में,
अपना उद्धार कार्य आरम्भ किया परमेश्वर ने।
पहले देहधारण ने मानव को पाप से छुड़ाया
यीशु मसीह के देह द्वारा।
क्रूस से बचाया यीशु ने उसे पर, उसका शैतानी स्वभाव बना रहा।
अंत के दिनों में,
परमेश्वर मानवजाति को शुद्ध करने के लिए न्याय करता है।
यह होने के बाद ही
वो अंत करेगा अपना उद्धार कार्य और करेगा विश्राम, विश्राम।
रहता है मनुष्यों के बीच, उनके दुःख महसूस करता
और अपने वचनों का उपहार उन्हें देता है।
मनुष्य केवल परमेश्वर के देहधारी शरीर को ही स्पर्श कर सकता है।
उसके द्वारा उद्धार और सभी वचनों और सत्य की समझ, पा सकता है।
दूसरा देहधारण, मानव को शुद्ध करने के लिए काफी है,
इस तरह अपने देहधारण के मायने और सभी काम पूरे कर लेगा।
देह में परमेश्वर के काम का अब अंत होगा।
वह फिर से देहधारण नहीं करेगा, नहीं करेगा, नहीं करेगा।
इस देहधारण के बाद,
उद्धार और देह में उसके कार्य, खत्म हो जायेंगे।
क्योंकि वो मनुष्यों को छाँट,
अपने चुने हुओं को हासिल कर चुका होगा।
जिन्हें मिल गयी माफ़ी, दूसरा देहधारण उन्हें आज़ाद कर देगा।
स्वभाव बदलेंगे और साफ़ हो जाएंगे।
शैतान के प्रभाव से छूटकर, वे परमेश्वर की गद्दी को लौटेंगे।
शुद्ध होने का यही है तरीका,
हाँ, पूरी तरह शुद्ध होने का बस यही है तरीका,
बस यही है तरीका।
"वचन देह में प्रकट होता है" से