परमेश्वर मानता है इंसान को अपना सबसे प्रिय
परमेश्वर ने इंसान को बनाया।
चाहे इंसान हो गया दूषित या चले उसके पीछे,
परमेश्वर के लिए इंसान है दुलारा,
या इंसान के शब्दों में परमेश्वर का सबसे प्यारा प्रियजन।
इंसान नहीं उसका खिलौना।
वो है रचयिता और इंसान है उसकी रचना।
लगता है पद है अलग,
पर इंसान के लिए जो करता है परमेश्वर वो है उनके रिश्ते से बहुत बढ़कर।
इंसान से है प्रेम परमेश्वर को और है उसका ख़्याल,
दिखाता है वो इंसान को अपनी फ़िक्र।
बिन थके वो देता है इंसान को,
कभी नहीं लगता उसे ये है अतिरिक्त कार्य,
कभी नहीं लगता उसे चाहिए है मिलना श्रेय।
कभी नहीं लगता उसे कि इंसान को बचाना,
उसकी पूर्ति करना और उसे सब कुछ देना
है कोई बहुत बड़ा योगदान।
वो बस अपने तरीके से,
अपने सार से, अपने स्वरूप से,
इंसान को चुपचाप, ख़ामोशी से करता है पूर्ति।
चाहे जितना इंसान पाए उससे,
परमेश्वर माँगता नहीं है श्रेय।
वो होता है उसके सार से तय।
यही है सही मायने में उसके स्वभाव की अभिव्यक्ति।
परमेश्वर ने इंसान को बनाया।
चाहे इंसान हो गया दूषित या चले उसके पीछे,
परमेश्वर के लिए इंसान है दुलारा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से